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فصول الكتاب

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ـ وقال: ((... واستعار (الضرب) للعرف؛ ولم يستعمل ذلك قبل الطائي)) (١).

ـ وقال عند قوله:

جَرى حاتِمٌ في حَلبَةٍ مِنهُ لَوجَرى ... بِها القَطرُ شَأوًا قيلَ أَيُّهُما القَطرُ [بحر الطويل]

((والرواية المعروفة: (بها القطر شأوا واحدا جمس القطر)؛ وهوأشبه بكلام الطائي)) (٢).

ـ قال عند قوله:

أَإِلى بَني عَبدِ الكَريمِ تَشاوَسَت ... عَيناكَ وَيلَكَ خِلفَ مَن تَتَفَوَّقُ [بحر الكامل]

((ومن روى: (خَلْفَ) بفتح الخاء؛ فهوبعيد من مذهب الطائي، وله مذهب في القياس)) (٣).

وهذه الأمثلة تذكرنا بما سبق أن قلناه من أن علماءنا كانوا يدركون أن لكل شاعر سماته وخصائصه الأسلوبية على مستوى بناء الجملة والبنية الصرفية (٤).

وبالإضافة إلى الثقافة اللغوية عند التبريزي، نجد جوانب أخرى لثقافته، تتمثل في:

ـ ثقافته التاريخية كثقافته بالسيرة النبوية والوقائع الحربية وتراجم العرب وشعرائها (٥).

- وقوفه على عادات العرب (٦)، وأنسابهم (٧)، وأمثالهم، وأيامهم، نباتاتهم، حيواناتهم، وأصنامهم، وأسلحتهم. (٨).


(١) يُنْظَرُ ديوان أبي تمام بشرح التبريزي: [٣/ ٢٩٢].
(٢) يُنْظَرُ ديوان أبي تمام بشرح التبريزي: [٤/ ٥٧٤].
(٣) يُنْظَرُ ديوان أبي تمام بشرح التبريزي: [٤/ ٣٩٦] وينظر أيضا: [٣/ ١٦٢]، [٣/ ١٩٧].
(٤) ينظر ما قيل في ترجمة أبي العلاء، ص ٢٢
(٥) يُنْظَرُ ديوان أبي تمام بشرح التبريزي: [١/ ٣٦٢]، [١/ ٣٩٤]، [١/ ٧٤]، [٢/ ١٣٩]، [٢/ ١٥]، [٢/ ١٢٦]، [٢/ ٣٥٦]، [٢/ ٣٨٨]، [٣/ ١٩٠]، [٣/ ٢٥٩]، [٣/ ٣٠٠]، [٤/ ٣٤٩]، [٤/ ٥٥٨]، [٤/ ٥٨٥].
(٦) يُنْظَرُ ديوان أبي تمام بشرح الخطيب التبريزي: [١/ ٣١٩]، [١/ ٣٧٤]، [٢/ ٢١٠]، [٢/ ٢٣٨]، [٢/ ٢٤]، [٢/ ٣٠٩]، [٢/ ٤١]، [٣/ ١١٤]، [٣/ ١٩٤]، [٣/ ٢٤١]، [٣/ ٢٦٣]، [٣/ ٥١]، [٤/ ٣٧٦].
(٧) يُنْظَرُ ديوان أبي تمام بشرح الخطيب التبريزي [١/ ٣٩٥]، [٢/ ١٩]، [٣/ ١٩٢]، [٣/ ١٦٩]، [٣/ ١٩٣]، [٣/ ٢١٥]، [٣/ ٤٧]، [٣/ ٤٧]، [٤/ ١٠٩]، [٤/ ٥٧٧].
(٨) يُنْظَرُ ديوان أبي تمام بشرح الخطيب التبريزي أمثلة على ما سبق المواضع التالية: [٣/ ٣٠١]ـ[٤/ ٤٢٧]، [٢/ ٣٤٣]، [٢/ ٢٦٤]، [٣/ ١٣٣]ـ[٢/ ٣١٤]، [٤/ ٥٧٧]، [٢/ ٢٤٥]، [٣/ ٢٢٩]ـ[٢/ ١٤٩]ـ[٢/ ١٤٦]، [٢/ ١٤].

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