يعد هذا القدر الموجود من هذه النسخة المنسوبة لابن النقيب في كلتا القطعتين من النسخ النفيسة نوعًا ما، ويظهر فيه بعض آثار الإتقان، فمن ذلك أن الناسخ يستعمل الدارة المنقوطة بعد نهاية الخبر أو الفقرة، وهذا مما يدل على المقابلة، ينظر:[ك/ ٤/ أ]، و [ك/ ١٥/ ب]، و [ك/ ٥٥/ ب]، و [ك/ ٦٤/ ب]، و [ك/ ١٠١/ أ]، و [ك/ ١٢٧/ ب]، وينظر:[ف/ ١٢/ أ، ب]، و [ف/ ٦١/ أ، ب]، و [ف/ ٩٢/ أ، ب]، و [ف / ١١٧/ أ، ب]، و [ف / ١٤٨/ أ، ب]، و [ف / ٢٠٠/ أ، ب].
ومما به من آثار الإتقان الإلحاقات المصححة الملحقة بالحواشي المكملة للصُّلب، ينظر:[ك/ ١/ أ]، و [ك/ ٣/ أ]، و [ك/ ٧/ ب]، و [ك/ ١١٤/ أ]، و [ك/ ١٤٤/ ب]، و [ك/ ١٦٩/ ب]، وينظر:[ف/ ٣/ أ]، و [ف/ ٨٤/ أ]، و [ف/ ٨٨/ ب]، و [ف / ١٠٦/ ب]، و [ف / ١٦٩/ ب]، و [ف / ١٨٣/ أ]، و [ف/ ١٩٥/ ب].
وقد يكون الإلحاق المصحح الملحق في الحاشية المكمل للصُّلب خبرا أو أكثر، ينظر: بالنسبة للجزء الموجود من هذه النسخة بدار الكتب المصرية [ك/ ٢٦/ أ]، [ك/ ٤٢/ أ]، و [ك/ ٦١/ ب]، و [ك/ ١٧٥/ أ]، و [ك/ ١٧٦/ أ]، بينما لم نقف على ذلك بالنسبة للجزء الموجود في مكتبة فيض الله.
وأحيانًا تقع إلحاقات غير مصححة ملحقة في الحواشي مكملة للصُّلب، ينظر:[ك/ ٢/ أ]، و [ك/ ٤٣/ أ]، و [ك/ ١٥٥/ أ]، وينظر:[ف/ ٢٢/ أ].
وأحيانًا ينسب الناسخ ما ألحقه إلى الأصل، فقد يُكتب بعد العبارة الملحقة بالحاشية:"صح أصل"، ينظر:[ك/ ١٥/ ب]، و [ك/ ٢٢/ ب]، و [ك/ ٤٢/ ب]، و [ك/ ٥١/ أ]، و [ك/ ٥٥/ ب]، و [ك/ ١٧٥/ أ]، و [ك/ ١٧٦/ أ]، وينظر:[ف/ ٩٠/ ب]، و [ف/ ١٤٥/ أ].